स्त्री गर्भाशय को अच्छी तरह जानें।

 


गर्भाशय नाशपाती के आकार की रचना है, जो उदर गुहा के निचले श्रेणि भाग में स्थित होता है।

 इसके पीछे की ओर मलाशय एवं आगे की ओर मूत्राशय स्थित होता है।

 * गर्भाशय के निचले संकरे भाग को ग्रीवा कहते है। यह योनि में खुलता है। 

* गर्भाशय का मुख्य कार्य निषेचित अण्डाणु को भ्रूण में परिवर्तित होने तथा इसके विकास के लिए स्थान प्रदान करना है। यहीं आगे चलकर बच्चे का विकास होता है।

 (04) योनि तथा योनि अंग




  •  योनि तथा योनि अंग को सम्मिलित रूप से भाग कहते है। योनि एक संकरी नली होती है, जिसकी दीवार पेशीय ऊतको की बनी होती है। 
  •  इसका एक शिरा मादा जनन छिद्र के रूप में बाहर खुलता है तथा दूसरा शिरा पीछे की ओर गर्भाशय की ग्रीवा से जुड़ा रहता है।
  • योनि के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्र को योनि द्वार कहते हैं। योनि की दीवार में बार्थोलिन की ग्रंथियों पायी जाती है, जिनसे एक चिपचिपा द्रव निकलता है। 
  • यह द्रव संभोग के समय योनि को चिकना बनाता है। योनि तथा मूत्रवाहिनी के द्वार के ऊपर एक छोटा-सा मटर के दाने के जैसा उभार होता है, जिसे भग शिश्निका कहते है। 
  • यह अत्यन्त ही उत्तेजक अंग है, जिसे स्पर्श करने या शिश्न के सम्पर्क में लाने पर स्त्री को अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है। 
  • मैथुन के समय स्खलन में शिश्न से वीर्य निकलकर योनि में गिरता है तथा योनि इसे अण्डवाहिनी में पहुँचाती है। 
  (05) मानसिक चक्र 

स्त्री का प्रजनन काल 12-13 वर्ष की उम्र में प्रारंभ होता है। उसे मेनार्की कहा जाता है, जो 40-45 की उम्र तक चलता है।

 इस प्रजनन काल में गर्भावस्था को छोड़कर प्रति 26 से 28 दिनों की अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इसकी आंतरिक दीवार से श्लेष्म का स्राव होता है।

 यह स्राव 3-4 दिनो तक चलता है। इसे ही रजोधर्म या मासिक धर्म या ऋतु स्राव कहते है।


  • स्त्रियों में 40-50 वर्ष के पश्चात् ऋतु साव नहीं होता, इसे रजोनिवृति कहते है।
  • ऋतु स्राव के प्रारंभ होने के 14 दिन बाद अण्डोत्सर्ग होता है। स्त्रियों में एक माह में केवल एक बार अण्डोत्सर्ग होता है।
  •    यह अण्डोत्सर्ग के कुछ देर पश्चात् ही अण्डाणु, अण्डवाहिनी में पहुँच जाता है और 15 से 19वे दिन तक इसमें रहता है। 
  • इस बीच यदि स्त्री सम्भोग करे, तो यह अण्डाणु निषेचित होकर गर्भाशय में चला जाता है अन्यथा अगले ऋतु स्त्राव में वह बाहर निकल जाता है।
  •   अण्डोत्सर्ग के पश्चात् पुटक पीले रंग का हो जाता है। अब इस पुटक को पीत पिण्ड या कॉपर्सल्यूटियम कहते है। 
  • र्कार्पसल्यूटियम द्वारा एक हार्मोन का स्त्राव होता है जिसे प्रोजेस्टेरॉन कहते है।
गर्भधारण के लिए उपयुक्त परिस्थितियों 

सम्भोग क्रिया द्वारा हमेशा गर्भधारण नहीं होता है। इसके लिए कुछ निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक है- 

  • गर्भधारण के लिए आवश्यक है, ऋतु स्त्राव के 14वें दिन के आस-पास या 11वें दिन या 18वें दिन के अंदर सम्भोग अनिवार्य रूप से हो।
  • अण्डवाहिनी एवं गर्भाशय सूजन एवं संक्रमण से मुक्त हो। 
  • वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या सामान्य हो। 

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